भारत की धरती पर ऐसे कई संत हुए जिन्होंने शून्य संसाधनों के साथ शिखर जैसे संकल्पों को पूरा किया – पीएम मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज स्वामी आत्मस्थानंद के जन्म शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहा है कि आज का ये आयोजन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी कई भावनाओं और स्मृतियों से भरा हुआ है। स्वामी आत्मस्थानंद जी ने शतायु जीवन के काफी करीब ही अपना शरीर त्यागा था। मुझे सदैव उनका आशीर्वाद मिला है। ये मेरा सौभाग्य है कि आखरी पल तक मेरा उन से संपर्क रहा। आखरी पल तक स्वामी जी का मुझ पर आशीर्वाद बना रहा और मैं ये अनुभव करता रहा कि स्वामी जी महाराज चेतन स्वरूप में आज भी हमें आशीर्वाद दे रहे हैं। मुझे खुशी है उनके जीनव और मिशन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आज दो स्मृति संस्करण, चित्र जीवनी और डॉक्युमेंट्री भी रिलीज हो रही है।

पीएम मोदी ने इस कार्यक्रम में कहा कि हमारे संतों ने हमें दिखाया है कि जब हमारे विचारों में व्यापकता होती है, तो अपने प्रयासों में हम कभी अकेले नहीं पड़ते। आप भारत वर्ष की धरती पर ऐसे कितने ही संतों की जीवन यात्रा देखेंगे, जिन्होंने शून्य संसाधनों के साथ शिखर जैसे संकल्पों को पूरा किया। सैकड़ों साल पहले आदि शंकराचार्य हों या आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, हमारी संत परंपरा हमेशा ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का उद्घोष करती रही है। रामकृष्ण मिशन की तो स्थापना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार से जुड़ी हुई है। सन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा को देखना, जीव में शिव को देखना, यही सर्वोपरि है। इस महान संत परंपरा को, सन्यस्थ परंपरा को स्वामी विवेकानंद जी ने आधुनिक रूप में ढाला। स्वामी जी ने भी सन्यास के इस स्वरूप को जीवन में जिया, और चरितार्थ किया। आप देश के किसी भी हिस्से में जाइए, आपको ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र मिलेगा जहां विवेकानंद जी गए न हों, या उनका प्रभाव न हो। उनकी यात्राओं ने गुलामी के उस दौर में देश को उसकी पुरातन राष्ट्रीय चेतना का अहसास करवाया, उसमें नया आत्मविश्वास फूंका।

उन्होंने आगे कहा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने मां काली का स्पष्ट साक्षात्कार किया था। वो कहते थे- ये सम्पूर्ण जगत, ये चर-अचर, सब कुछ मां की चेतना से व्याप्त है। यही चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है। यही चेतना बंगाल और पूरे भारत की आस्था में दिखती है।

 

News & Image Source : Twitter (@BJP4India)

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