मीडिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, संविधान (एक सौ तीसवाँ संशोधन) विधेयक, 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 आज लोकसभा में पेश किए गए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया को लेकर विपक्ष के विरोध के बीच ये विधेयक पेश किए। कांग्रेस, एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी सहित विपक्षी दलों ने इन विधेयकों को असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था विरोधी बताते हुए इनका विरोध किया। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ये विधेयक शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत और जनता के सरकार चुनने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि इससे अनिर्वाचित नौकरशाही को विधायिका की भूमिका निभाने का अधिकार मिल जाएगा।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उन्होंने कहा कि यह संसदीय लोकतंत्र को कमजोर करता है और ये संशोधन मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को कार्यकारी एजेंसियों की दया पर छोड़ देंगे। कांग्रेस के मनीष तिवारी ने भी इन विधेयकों का विरोध करते हुए कहा कि इससे कार्यपालिका को विधायिका पर नियंत्रण की शक्ति मिलगी। उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, क्योंकि ये विधेयक संसदीय लोकतंत्र को बिगाड़ने वाले हैं। उन्होंने सरकार से इन तीनों विधेयकों को वापस लेने की अपील की। आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने सवाल उठाया कि इन विधेयकों को जल्दबाजी में क्यों लाया गया। उन्होंने कहा कि ऐसे संविधान संशोधन विधेयक लाने की क्या आवश्यकता थी। उन्होंने आरोप लगाया कि यह विपक्ष की सत्ता वाले राज्यों को अस्थिर करने की एक दुर्भावनापूर्ण मंशा है। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने इन विधेयकों को संघीय व्यवस्था विरोधी बताते हुए कहा कि इनका उद्देश्य विपक्ष शासित राज्यों को निशाना बनाना है। समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने भी इन विधेयकों को असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताते हुए इनका विरोध किया। बाद में, सदन ने तीनों विधेयकों को आगे की जाँच के लिए संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया।
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